Table of Contents
वैसे तो मंगलवार और शनिवार बजरंगबली का दिन होता है , और इस दिन चालीसा और बजरंग बाण (Bajrang Baan) पढ़ना अच्छा होता है , पर आज का हमारा ब्लॉग , बजरंग बाण के साथ साथ इस विषय पर है की बजरंज बाण पढ़ने से हमें क्योँ बचना चाहिए।
मंगलवार और शनिवार बजरंगबली का दिन है , और भक्त कृपा पाने के लिए इस दिन साथ बार हनुमान चालीसा का पाठ करते है , साथ ही कुछ लोग बजरंग बाण (Bajrang Baan)का पाठ करते है , पर वह लोग बजरंग बाण के प्रभाव और नियम से अनजान होते है , और कई ऐसी गलतिया कर देते है जिससे उनपर इसका नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। आज है इस ब्लॉग में बजरंग बाण के साथ साथ यह भी बतायेंगे की क्यों ना करे बजरंग बाण (Bajrang Baan)का पाठ।
बजरंजबाण, (Bajrang Baan)भगवान हनुमान को समर्पित एक शक्तिशाली पाठ है , तुलसीदास द्वारा रचित, यह प्रार्थना शक्ति, साहस, और नकारात्मक ऊर्जाओं से संरक्षण के लिए प्रशंसित है। हालांकि, इसके लाभों को व्यापक रूप से स्वीकार किया जाता है, इसके बारे में अधिक उपयोग की सावधानियां भी हैं।
बजरंग बाण (Bajrang Baan) – नियम
इस पाठ को शुरू करने के लिए मंगलवार को सबसे शुभ माना गया है , इसी दिन पाठ की शुरुवात करे।
कई विद्वानों की माने तो इसके साथ हनुमान चालीस का पाठ भी करना चाहिए , और प्रभाव के लिए इसका प्रयोग ४१ दिनों तक करना चाहिए , ब्रम्हचर्य का पालन करना चाहिए आदि आदि , पर ऐसा नहीं है। बजरंग बाण (Bajrang Baan) को पढ़ने का कोई ठोस कारण होना चाहिए।
जब तक आपको ऐसा ना लगे की अब कोई रास्ता नहीं बचा है , और क्षत्रु आप हावी है , आपके जान पर आ गई है , परेशानियों का कोई हल नहीं निकल रहा तब आपको बजरंग बाण का पाठ करना चाहिए।
बजरंग बाण को आप परेशानियों का आखरी तीर भी मान सकते है ,
कभी भी बिना कारन के बजरंग बाण का पाठ ना करे , आप बजरंगबली को खुश करने के लिए हनुमान चालीस या सुन्दरकाण्ड का नित्य पाठ कर सकते है।
बजरंग बाण में हनुमान जी को स्वयं श्रीराम जी की कसम दी जाती है , और महाराज धीरेन्द्र शास्त्री जी भी कहते है की याचना करिये (हनुमान चालीसा ) अगर याचना करने से काम हो रहा तो आदेश क्यों ?
सुनिए महाराज जी क्या कहते है
इसलिए कोशिश करे की बजरंगबाण की ज़रूरत ना पड़े , पैर जब कोई रास्ता ना दिखे तो मात्र बजरंग बाण से आपके सारे कस्ट और शत्रुओ का नाश हो जायेगा।
Bajrang Baan in Hindi
दोहा
निश्चय प्रेम प्रतीति ते, विनय करैं सनमान ।
तेहि के कारज सकल शुभ, सिद्ध करें हनुमान ॥
जय हनुमन्त संत हितकारी । सुन लीजै प्रभु अरज हमारी ।।
जन के काज बिलम्ब न कीजै । आतुर दौरि महासुख दीजै ।।
जैसे कूदी सिन्धु महि पारा । सुरसा बदन पैठी विस्तारा ।।
आगे जाय लंकिनी रोका । मारेहु लात गई सुर लोका ।।
जाय विभीषण को सुख दीन्हा । सीता निरखि परम-पद लीना ।।
बाग उजारि सिन्धु मह बोरा । अति आतुर जमकातर तोरा ।।
अक्षय कुमार मारि संहारा । लूम लपेटि लंक को जारा ।।
लाह समान लंक जरि गई । जय-जय धुनि सुरपुर में भई ।।
अब बिलम्ब केहि कारन स्वामी । कृपा करहु उर अन्तर्यामी ।।
जय जय लखन प्रान के दाता । आतुर होई दु:ख करहु निपाता ।।
जै गिरिधर जै जै सुख सागर । सुर-समूह-समरथ भट-नागर॥
ओम हनु हनु हनु हनुमंत हठीले । बैरिहि मारु बज्र की कीले॥
गदा बज्र लै बैरिहि मारो । महाराज प्रभु दास उबारो ।।
ओंकार हुंकार महाप्रभु धाओ । बज्र गदा हनु विलम्ब न लाओ ।।
ओम ह्नीं ह्नीं ह्नीं हनुमंत कपीसा । ओम हुं हुं हुं हनु अरि उर-सीसा॥
सत्य होहु हरी शपथ पायके । राम दूत धरु मारू जायके
जय जय जय हनुमन्त अगाधा । दुःख पावत जन केहि अपराधा ।।
पूजा जप-तप नेम अचारा । नहिं जानत हो दास तुम्हारा ।।
वन उपवन मग गिरि गृह मांहीं । तुम्हरे बल हम डरपत नाहीं ।।
पायं परौं कर जोरी मनावौं । येहि अवसर अब केहि गोहरावौं ।।
जय अंजनी कुमार बलवंता । शंकर सुवन वीर हनुमंता ।।
बदन कराल काल कुलघालक। राम सहाय सदा प्रतिपालक ।।
भूत प्रेत पिसाच निसाचर। अगिन वैताल काल मारी मर ।।
इन्हें मारु, तोहि शपथ राम की । राखउ नाथ मरजाद नाम की ।।
जनकसुता हरि दास कहावो । ताकी शपथ विलम्ब न लावो ।।
जै जै जै धुनि होत अकासा । सुमिरत होत दुसह दुःख नासा ।।
चरण शरण कर जोरि मनावौं । यहि अवसर अब केहि गोहरावौं ।।
उठु उठु चलु तोहि राम-दोहाई । पायँ परौं, कर जोरि मनाई ।।
ओम चं चं चं चं चपल चलंता । ओम हनु हनु हनु हनु हनुमन्ता ।।
ओम हं हं हाँक देत कपि चंचल । ओम सं सं सहमि पराने खल-दल ।।
अपने जन को तुरत उबारौ । सुमिरत होय आनंद हमारौ ।।
यह बजरंग बाण जेहि मारै। ताहि कहो फिर कोन उबारै ।।
पाठ करै बजरंग बाण की । हनुमत रक्षा करैं प्रान की ।।
यह बजरंग बाण जो जापैं । ताते भूत-प्रेत सब कापैं ।।
धूप देय अरु जपै हमेशा । ताके तन नहिं रहै कलेसा ।।
दोहा
प्रेम प्रतीतिहि कपि भजै, सदा धरै उर ध्यान ।
तेहि के कारज सकल सुभ, सिद्ध करैं हनुमान ।।